खरगोन जिले में मुख्य उद्देश्य देसी बीजों का संरक्षण
आदिवासी जनजातीय न्यूज नेटवर्क रिपोर्टर श्रवण सिंह
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इसी सफ़र में उनका एक मुख्य उद्देश्य देसी बीजों का संरक्षण भी रहा। बार्चे बताते हैं कि देसी बीज इकट्ठा करने की उनकी चाह उन्हें सुदूर पहाड़ियों और वनों तक ले गयी, जहाँ आदिवासी किसान … फिर वे जहाँ भी वर्कशॉप या फिर ट्रेनिंग के लिए जाते, वहां किसानों को देशी बीज बांटते थे। बहुत बार, अलग-अलग राज्यों के अफसरों ने भी अपने यहाँ किसानों को जैविक खेती सिखाने के लिए आमंत्रित किया है, खरगोन जिले में भी उन्होंने अपने एक किसान साथी से जैविक स्टॉल खुलवाया है। 9 साल में 5, 000 किसानों तक मुफ़्त देशी बीज पहुंचा चुके हैं .
“इन आदिवासी भाइयों से बहुत सी फसलों जैसे मक्का, गेंहूँ, चावल, ज्वार, अरहर, बाजरा, मूंगफली , भिंडी, गिलकी , उड़द , अमाड़ी , फल और सभी तरह की दालों के देसी बीज हमें मिले। इसके बाद, एक बार हम किसानों के समूह को लेकर महाराष्ट्र के टूर पर गये थे। यहाँ वर्धा के आसपास के इलाकों में जैविक खेती के ही बहुत-से तरीके हमने देखे,”
धीरे-धीरे उन्होंने अपना स्वदेशी बीजों का बैंक तैयार कर लिया। फिर वे जहाँ भी वर्कशॉप या फिर ट्रेनिंग के लिए जाते, वहां किसानों को देशी बीज बांटते थे। उन्होंने न सिर्फ़ ट्रेनिंग के दौरान, बल्कि अलग-अलग जगह लगने वाले कृषि मेलों और प्रदर्शनी में भी देशी बीज का प्रचार व प्रसार किया। आज उनका काम इतना फ़ैल चूका है कि मध्य-प्रदेश के अलावा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों में भी आज किसान उन्हें ट्रेनिंग के लिए बुलाते हैं। उनसे फ़ोन करके अपने लिए देशी बीज मंगवाते हैं।