आज के इस डिजिटल युग में सबर आदिम जनजाति जंगलों, पहाड़ों की गुफाओं में आदिमानव की तरह गुफाओं में रहते हैं

आज के इस डिजिटल युग में सबर आदिम जनजाति जंगलों, पहाड़ों की गुफाओं में आदिमानव की तरह गुफाओं में रहते हैं. जिस सबर बस्ती में आज से पांच साल पहले 25 परिवार रहते थे अब उनकी संख्या पांच बची है। झारखंड में आदिम जाति सबर विलुप्ति के कगार पर है और उनके बारे में सुध लेने की किसी को फुर्सत नहीं ह … … उन्होंने बताया, “ज्यादातर लोगों की मौत हो गई है … जब हम मोंगली सबर के (65) वर्ष) में घुसे तो साँस लेना मुश्किल हो रहा था क्योंकि वह जिस अँधेरे कमरे में रहता है स्थिति … जिन्हें अभी तक विशेष जनजाति का दर्जा मिला है पहले उन्हें आदिम जनजातियाँ कहते थे।
ये आठ में से 5 जनजातियाँ विलुप्तप्राय की श्रेणी में हैं। इसमें पाँच में से एक है सबर आदिम जनजाति। यह जनजाति आज भी जंगलों, पहाड़ों की गुफाओं में आदिमानव की तरह रह रही है . खात्मे के कगार पर आ गया है सबर जनजाति .
पूर्वी सिंह पृष्ठभूमि के झारखंड और ओडिशा सीमा पर लखाईडीह पहाड़ पर एक ऐसी तस्वीर देखने को मिलती है कि विश्वास नहीं होता आज के इस डिजिटल युग में कोई इंसान आदिमानव की तरह भी जीवन जी सकता है। लेकिन यह सच है। लखाईडीह के जंगल और पहाड़ के बीच टुकड़ों की गुफा में दो सबर परिवार रहते हैं। इनमें से एक लखाईडीह गांव का है और दूसरा दस साल पहले ओडिशा से झारखंड आया था। यहां कोई सुविधा नहीं थी तो इसने भी टुकड़ों की गुफा को अपना घर बना लिया और पत्नी, बच्चे और मां के साथ गुफा में रहने लगा।
आदि मानव की तरह पहाड़ी नाले का पानी पीना, पत्थर की गुफा में रहना, भूख लगने पर जंगल के फल या कंद-मूल भोजन इनकी जीवन शैली है। शरीर पर कपड़े हैं या नहीं, इसकी उन्हें कोई चिंता नहीं है, बस जंगल में जहां इच्छा हुई बैठ गए और आराम कर लिया। पत्थर की गुफा में दोनों सबर परिवार खाना बनाते हैं और रात को सोते हैं। दिन जंगल में, तो रात गुफा में बीतती है। रात के समय रोशनी के लिए आग जलाकर रखते हैं।
दूर-दूर तक जंगल और पहाड़ होने के कारण हाथियों और जंगली जानवरों का डर बना रहता है। इनसे बचाव के लिए इन लोगों ने पेड़ पर मचान बना रखा है। मच इनकी रक्षा का दूसरा बड़ा साधन है। जब कभी ऐसा हुआ, तो सभी लोग मचान पर चढ़ जाते हैं और वहीं से हाथी भी भगाते हैं। कभी-कभी ये लोग यहाँ थोड़ी-बहुत खेती भी करते हैं। ओडिशा और झारखंड की सीमा पर स्थित पहाड़ियों में बसा सबर परिवार झारखंड में है या ओडिशा में, इसके बारे में स्थानीय प्रशासन को भी कोई विशेष जानकारी नहीं है।
झारखंड सरकार की लिस्ट बताती है कि राज्य में कुल 32 जनजातियाँ हैं। इन 8 आदिम जनजातियों की श्रेणी में हैं। ये आठ में से 5 जनजातियाँ विलुप्तप्राय की श्रेणी में हैं। इसमें पाँच में से एक है सबर आदिम जनजाति। यह जनजाति आज भी जंगलों, पहाड़ों की गुफाओं में आदिमानव की तरह रह रही है जिसमें से कोई भी औसतन 45 साल से ज्यादा जिंदा नहीं रहता है।
इन दो सबर परिवारों में एक के मुखिया का नाम सुरू सबर और दूसरे का नाम कोचाबुधू सबर है। सुरू सबर अपनी पत्नी सुकमती सबर के साथ रहता है। कोचाबुधू सबर का परिवार थोड़ा बड़ा है। इसमें उनकी पत्नी सुनमनी सबर, बेटे शंभू सबर और मंगडू सबर, बेटी चंपा सबर के साथ ही मां सनीबेर सबर भी हैं। ये सब यानी दोनों परिवारों के साथ ये आठ से दस लोग गुफा में रहते हैं। जिन पत्तियों की गुफा में ये रहती हैं, उन्हीं टुकड़ों के ऊपर सबर बच्चे खेलते भी हैं। ये लोग बच्चों को बचपन से ही पत्थरों पर चढ़ना भी सिखाते हैं।
पूर्वी सिंह फाइल में महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के सह अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती सबर जनजाति के मरीजों के आंकड़े बताते हैं कि यहां 45 साल से अधिक उम्र के मरीज कभी भर्ती नहीं होते हैं। जो भर्ती हुई उनमें से करीब 50 फीसद मर जाते हैं। जमशेदपुर के घाटशिला प्रखंड में दारी साईं सबर बस्ती में आज से पांच साल पहले सबर जनजातियों के 25 परिवार रहते थे, अब उनकी संख्या पांच बची है।